Guru Ravidas Jayanti आज है रविदास जयंती, जानिए कब और कहां पैदा हुए थे गुरु रविदास जी और कैसे बने थे संत आइए जानते हैं उनके जन्म और जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें.
Guru Ravidas Jayanti किसी तारीख या दिन को फिक्स नहीं बल्कि यह एक त्यहार की तरह क्लेंडेर के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा तिथि को आता है.
Date- संत रविदास जयंती हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस बार यह दिन Wednesday, 16 February 2022 को है। इस साल उनका 642वां जन्मदिन मनाया जा रहा है। संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास एक गाँव में हुआ था।
उनकी माता का नाम श्रीमती कलासा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोक दास था। संत रविदास जी ने लोगों को बिना किसी भेदभाव के एक-दूसरे से प्यार करना सिखाया।
गुरु रविदास जी का जन्म कहाँ हुआ था?
कहा जाता है कि गुरु रविदास जी का जन्म यूपी के काशी में हुआ था। उन्हें संत रैदास और भगत रविदास जी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु रविदास जी का जन्म वर्ष 1398 में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। कहा जाता है कि जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ था उस दिन रविवार था। इस वजह से उनका नाम रविदास पड़ा।
ऐसे में उनके जन्मदिन यानि माघ पूर्णिमा के दिन दुनिया भर से लाखों लोग काशी पहुंचते हैं. यहां एक भव्य उत्सव मनाया जाता है। साथ ही सिख धर्म के लोग रविदास जयंती को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इस दिन से दो दिन पहले, गुरु ग्रंथ साहिब का एक अखंड पाठ किया जाता है।
इस दिन पवित्र नदी में स्नान किया जाता है
संत रविदास जयंती पर उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। उसके बाद अपने गुरु के जीवन से जुड़ी महान घटनाओं को याद करके उनसे प्रेरणा लें। संत रविदास के जीवन से कई ऐसी प्रेरक घटनाएं हैं जिनसे हम सुखी जीवन के सूत्र सीख सकते हैं।
यह दिन उनके अनुयायियों के लिए एक वार्षिक उत्सव के समान होता है। उनके जन्म स्थान पर लाखों भक्त पहुंचते हैं और वहां एक बड़ा कार्यक्रम होता है। जहां संत रविदास जी के दोहे गाए जाते हैं और भजन-कीर्तन भी होता है।
रविदास जी कैसे संत बने
एक पौराणिक कथा के अनुसार रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। एक दिन खेलने के बाद अगले दिन वह साथी नहीं आता तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने जाते हैं, लेकिन उसे पता चलता है कि वह मर चुका है। यह देखकर रविदास जी बहुत दुखी होते हैं और अपने दोस्त से कहते हैं कि उठो, यह सोने का समय नहीं है, मेरे साथ खेलो।
यह सुनकर उसका मृत साथी खड़ा हो गया। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत रविदास जी के पास बचपन से ही अलौकिक शक्तियां थीं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, उन्होंने अपनी ऊर्जा भगवान राम और कृष्ण की भक्ति के लिए समर्पित कर दी। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वे संत बन गए।